Муса Джалиль. Сон в тюрьме - читает Президент Общество дружбы между народами Чувашии и Палестины»

18.03.2021
muzey_musajalil «Моабитская тетрадь: поэзия правды и страсти…» - флэшмоб Муса Джалиль. Сон в тюрьме - читает Президент РООЧР «Общество дружбы и сотрудничества между народами Чувашии и Палестины», Директор представительства Российского комитете солидарности и сотрудничества с народами Азии и Африки в Чувашской Республике, академик Международной Гуманитарной Академии «Европа-Азия», доктор права Аль-Балауи Бассам Фатхи #ДружноЧитаемДжалиля Муса Джалиль Сон в тюрьме Дочурка мне привиделась во сне. Пришла, пригладила мне чуб ручонкой. — Ой, долго ты ходил! — сказала мне, И прямо в душу глянул взор ребенка. От радости кружилась голова, Я крошку обнимал, и сердце пело. И думал я: так вот ты какова, Любовь, тоска, достигшая предела! Потом мы с ней цветочные моря Переплывали, по лугам блуждая; Светло и вольно разлилась заря, И сладость жизни вновь познал тогда я… Проснулся я. Как прежде, я в тюрьме, И камера угрюмая все та же, И те же кандалы, и в полутьме Все то же горе ждет, стоит на страже. Зачем я жизнью сны свои зову? Зачем так мир уродует темница, Что боль и горе мучат наяву, А радость только снится? جمعية الصداقة الفلسطينية التشوفاشية, تشارك شعوب تتارستان فى احياء الذكرى 115 لشاعرها وأديبها "موسى جليل" طلبت منى الصديقة العزيزة, "ريما أبوزوفا", مديرة متحف "يانكى كوبالى",’ فى جمهورية تتارستان الروسية, أن اشارك "أونلاين", فى مهرجان شعري بقراءة جزء من أشعار صحفىى وأديب, تتري, دونها أثناء وقوعه بالاسر من قبل المحتلين, بالحرب العالمية الثانية, حيث تم أسره أثناء تأديته لعمله كصحفي, وهو يغطي أحداث الحرب على بلده الاتحاد السوفيتى, واحتلاله, ليتعرض بعدها للظلم من قبل حكومة بلاده التى اتهمته بالخيانة, ويقوم الاحتلال الالمانى النازي باعدامه مع 9 من رفاقه الاسرى, فى عام 1943 أثناء الحرب. المهرجان يهدف الى احياء الذكرى ال 115 لميلاده, الذى ينطمه المتحف الذى سمي باسمه فى جمهورية تتارستان "متحف موسى جليل". بعدما قرأت صباح الأمس احدى قصائده التى كتبها وهو فى الاسر وتخيلت الظلم الذى وقع عليه من قبل بلاده والمحتلين معا, تأملت كيف كانت مشاعره وأحاسيسه وهو يقف أمام حبل مشنقة المحتلين, وكيف غادر عالمنا مظلوما, فوجدت نفسى أبكي وكـأن هذا يحصل الان أمامي. وهذه بعض أبيات شعره التى ترجمتها للغة العربية وقرأتها فى مهرجان الشعر المخصص لاحياء ذكراه, والتى تم نشرها قبل قليل على موقع المتحف ووسائل التواصل الاجتماعي فى الانستجرام موسى جليل الحلم في السجن حلمت بابنتي في المنام. جاءت وصقلت ناصيتي بيدها. قالت لي: - أوه ، لقد مشيت لفترة طويلة! واخترقت روحي مباشرة نظرتها الطفولية كان رأسي يدور من الفرح عانقت طفلتى وغنى قلبي. وفكرت: إذن هذا ما أنت عليه ، الحب والشوق بلغ الحد! ثم سبحت معها أبحارا من الزهور سبحنا عبر المروج طائلين. ظهر الفجر بخفة وبان ضوء النهار ، وبعدها تذوقت حلاوة الحياة من جديد ... استيقظت. كما كان من قبل ، أنا في السجن والزنزانة القاتمة لا تزال كما هي ونفس الأغلال ، وفي شبه الظلام نفس الحزن كله ينتظر ، يقف على أهبة الاستعداد. لماذا أسمي أحلامي بالحياة؟ لماذا الزنزانة تشوه العالم ، أن الألم والحزن عذاب في الواقع ، هل الفرح هو الحلم فقط؟ بعد قرائتنا, وجهت تحية لشعوب تتارستان وروسيا الصديقة, وحدثتهم عن أن الظلم الذى تعرض له شعبى الفلسطيني يجعلنى أتضامن

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